सन 1902 में कार्ल लैंडस्टीनर ने ज्ञात किया कि सभी मनुष्यों में रुधिर सामान नहीं होता है

 बहुत से कारणों, जैसे  जैसे लंबी बीमार चोट लगने या ऑपरेशन के समय कभी-कभी रोगी को खून की कमी से रोगी के जीवन का खतरा हो जाता है। अथवा रोगी की मृत्यु भी हो जाती है। पुराने समय में एक मनुष्य का रुधिर दूसरे को चढ़ाने मैं कई अवसरों पर रुधिर लेने वाले अर्थात ग्रहण करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी। यह सिलसिला पिछली 19वीं सदी के अंत तक चलता रहा।

सन 1902 में कार्ल लैंडस्टीनर ने ज्ञात किया कि सभी मनुष्यों में रुधिर सामान नहीं होता है अतः रुधिर के आधान में रुधिर देने वाले अर्थात दाता एवं रुधिर ग्रहण करने वाले अर्थात ग्राही का रुधिर समान होना जरूरी है। और यदि दोनों का रुधिर आसमान हो तो दाता का रुधिर,ग्राही के रुधिर में पहुंचकर थक्का जम जाता है।जिसके कारण ग्राही की मृत्यु हो जाती है। वास्तविक रूप से यह थक्का दाता के (RBCs) में होता है। 

इस खोज के लिए कार्ल लैंडस्टीनर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 


रुधिर वर्ग A, B, AB एवं 0 (Blood Groups A, B, AB and O) 

कार्ल लैंडस्टीनर (1900, 1902) ने लाल रुधिराणुओं की कोशा कला में उपस्थित प्रतिजनों (प्रतिजन A एवं B) के आधार पर रुधिर को तीन रुधिर वर्गों में विभाजित किया- वर्ग A, वर्ग B एवं वर्ग 0 (0 या शून्य-zero)। चौथा एवं बहुत ही कम पाया जाने वाला रुधिर वर्ग AB है 1902 में लैंडस्टीनर के विद्यार्थियों वॉन डीकास्टेलो एवं स्टर्ली (Von Decastello and Sturli)ने खोज निकाला। 

रुधिर वर्ग A के व्यक्तियों के लाल रुधिराणुओं में ऐन्टिजन B अनुपस्थित होता है, परन्तु प्लाज्मा में ऐन्टिबॉडी b या B या पायी जाती है। रुधिर वर्ग B के व्यक्ति के रुधिराणुओं में ऐन्टिजन A अनुपस्थित होता है, किन्तु प्लाज़्मा अथवा सीरम में ऐन्टिबॉडी a या A या ẞ पाया जाता है। रुधिर वर्ग AB के व्यक्तियों में ऐन्टिजन A एवं B उपस्थित होते हैं, परन्तु कोई ऐन्टिबॉडी या प्रतिरक्षी नहीं पाया जाता। रुधिर वर्ग या प्ररूप के व्यक्तियों के लाल रुधिराणुओं में कोई ऐन्टिजन नहीं पाया जाता एवं दोनों ऐन्टिबॉडीज़ या प्रतिरक्षी "a" एवं "b" पाये जाते हैं।

अभिश्लेषण या समूहन (Agglutination or Clumping) 

RBCs की कला पर दो प्रकार के ग्लाइकोप्रोटीन्स उपस्थित होते हैं जिन्हें प्रतिजन (antigens) कहते हैं। इन्हे प्रतिजन -A व प्रतिजन -B के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इन प्रतिजनों का विरोध करने के लिये रुधिर प्लाज्मा में दो प्रतिरक्षी (antibody) - प्रतिरक्षी A या a तथा प्रतिरक्षी B या b उपस्थित होते हैं। प्रतिजन (antigen) -A युक्त रुधिर वाले व्यक्ति के प्लाज्मा में प्रतिरक्षी (antibody) -B तथा प्रतिजन -B युक्त रुधिर वाले व्यक्ति के प्लाज्मा में प्रतिरक्षी - A उपस्थित होता है। प्रतिजन - प्रतिरक्षी की उपस्थिति में तथा प्रतिजन-B प्रतिरक्षी - B की उपस्थिति में अत्यधिक चिपकने (sticky) हो जाते हैं जिससे RBCs आपस में चिपक कर एक गुच्छा सा बना लेते है इसी को रुधिर का अभिश्लेषण या समूहन (Agglutination or Clumping) कहते है।



रुधिर वर्गों का परीक्षण (Testing of Blood Groups) 

रुधिर आधान से पूर्व ग्राही (recipient) तथा दाता (donor) दोनों के रुधिर का परीक्षण करके उनके रुधिर वर्ग का निर्धारण करना अति आवश्यक होता है। जिस व्यक्ति का रुधिर परीक्षण करना होता है, उसके हाथ की एक अंगुली से निर्जर्मीकृत (sterilized) सुई की सहायता से रुधिर की एक-एक बूँद स्वच्छ स्लाइड पर (दो स्थानों पर) लेते हैं। पहली बूंद में  सीरम तथा दूसरी बूंद में नप सीरम मिलते हैं कुछ समय बाद दोनों बूंद का सावधानीपूर्वक  परीक्षण करते हैं यह दोनों बूंद का रुधिर फट जाता है तो रुधिर व्यक्ति का रुधिर वर्ग -AB होगा यदि कोई भी बूंद नहीं फटती तो रुधिर वर्ग -O होगा, यदि केवल पहली बूंद फटती है तो रुधिर वर्ग-A होगा और यदि केवल दूसरी बूंद फटती  है तो रुधिर वर्ग -B होगा 


रुधिर आधान या संचारण (Blood transfusion)

संवर्गीय रुधिर वाले व्यक्तियों में ही रुधिर-आधान   अति उत्तम माना जाता है परंतु आवश्यकता अनुसार आन्तर वर्गीय रूधिरा आधान भी संभव है ।

 अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला हैं कि 'O' वर्ग के व्यक्ति में कोई प्रतिजन (antigen) नहीं होता। अतः इसका रुधिर सभी व्यक्तियों में संचारित किया जा सकता है। इसके विपरीत इसके प्लाज़्मा में दोनों प्रकार के प्रतिरक्षियों (antibodies) की उपस्थिति के कारण इस वर्ग के व्यक्ति को किसी अन्य वर्ग के व्यक्ति का रुधिर बिल्कुल भी नहीं चढ़ाया जा सकता। 



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