जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय।
(जीवन-अवधि : सन् 1890-1937 ई0) छायावाद के जनक, श्रेष्ठ नाटककार, सर्वतोमुखी प्रतीभा से सम्पन्न छायावादी युग के प्रवर्तक महाकवि जयशंकरप्रसाद का जन्म काशी के एक सम्पन्न वैश्य-परिवार में सन् 1890 ई० (संवत् 1946) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। प्रसाद जी के पिता तथा बड़े भाई इनकी बाल्यावस्था में ही स्वर्गवासी हो गए थे। अल्पावस्था में ही लाड़-प्यार से पले प्रसाद जी को घर का सम्पूर्ण भार वहन करना पड़ा। इन्होंने विद्यालयीय शिक्षा छोड़कर घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बाँग्ला तथा संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञानार्जन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए भी इन्होंने अपने भीतर काव्य-प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक श्रम तथा जीवन के अन्तिम दिनों में राजयक्ष्मा से पीड़ित रहने के कारण 14 नवम्बर, सन् 1937 ई० (संवत् 1994) को 48 वर्ष की अल्पायु में ही ये गोलोकवासी हो गए। साहित्यिक-परिचय-द्विवेदी युग से अपनी काव्य-रचना का प्रारम्भ करनेवाले महाकवि जयशंकरप्रसाद छायावादी काव्य के जन्मदाता एवं छायावादी युग के प्रवर्तक समझे जाते हैं। इनकी रचना 'कामायनी' एक कालजयी कृति है, जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है। इन्होंने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनन्दवाद को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। प्रसाद आधुनिक हिन्दी काव्य के सर्वप्रथम कवि थे। इन्होंने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का रहस्यवादी चित्रण प्रारम्भ किया और हिन्दी काव्य जगत् में एक नवीन क्रान्ति उत्पन्न कर दी। इनकी इसी क्रान्ति ने एक नए युग का सूत्रपात किया, जिसे 'छायावादी युग' के नाम से जाना जाता है। कृतियाँ-इनकी प्रमुख काव्य-कृतियों- में 'चित्राधार', 'प्रेम पथिक', 'कानन कुसुम', 'झरना', 'आँसू', 'लहर', 'कामायनी' आदि शामिल हैं। चार प्रबन्धात्मक रचनाएँ- 'पेशोला की प्रतिध्वनि', 'शेरसिंह का शस्त्र समर्पण', 'प्रलय की छाया' तथा 'अशोक की चिन्ता' प्रसाद जी की अत्यन्त चर्चित नाटक-नाटककार के रूप में इन्होंने 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त', 'ध्रुवस्वामिनी', 'जनमेजय का नागयज्ञ', 'कामना', 'एक घंट', 'विशाख', 'राज्यश्री', 'कल्याणी', 'अजातशत्रु' और 'प्रायश्चित्त' नाटकों की रचना की है। उपन्यास- 'कंकाल', 'तितली' और 'इरावती' (अपूर्ण रचना)। कहानी-संग्रह-प्रसाद जी उत्कृष्ट कोटि के कहानीकार थे। इनकी कहानियों में भारत का अतीत मुस्कराता है। 'प्रतिध्वनि', 'छाया', 'आकाशदीप', 'आँधी' और 'इन्द्रजाल' इनके कहानी-संग्रह है। निबन्ध - 'काव्य और कला'। कामायनी - यह महाकाव्य छायावादी काव्य का कीर्ति स्तम्भ है।