जीवन-परिचय-हिन्दी साहित्य के गौरव हिन्दी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, मां भारती के पुत्र राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई० (संवत् 1943) में हुआ था। इनके पिता सेत रामचरण गुप्त को हिन्दी साहिय से विशेष प्रेम था। गुप्त जी की शिक्षा दिछा घर पर ही हुई। घर के माहित्यिक कतावरण के कारण इनमे काव्य के प्रति अभिरुचि जाग्रत हुई। 13 दिसम्बर सन् 1964 (संवत् 2021) में गुप्त जी का निधन हो गया। साहित्यिक-परिचय- मैथिलीशरण गुप्त में बाल्यावस्या से हो काव्यात्मक प्रवृत्ति विद्यमान थी। ये अत्यावस्या से ही छिटपुट काव्य-रचना करते थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने के पश्चात् उनकी प्रेडना से काव्य रचना करके इन्होंने हिन्दी काव्य की धारा को समृद्ध किया। इनकी कविता में राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्रप्रेम का श्वर प्रमुख रूप से मुखरित हुआ है। इसी कारण हिन्दी-साहित्य के तात्काल विद्वाने इन्हें 'राष्ट्रकवि' को उपाधि से विभूषित किया। आचार्य द्विवेदी से सम्पर्क होने के पश्चात् मैथिलीशरण गुप्त की रचनाई सरस्वती में प्रकाशित होने लगी इनकी प्रथम पुस्तक 'रंग में भंग' का प्रकाशन सन् 1909 में हुआ। किन्तु इन्हे ख्याति सन 1912 में 'भारत-भारती' के पश्चात् ही मिलनी प्रारम्भ हुई। इसी पुस्तक ने इन्हें 'राष्ट्रकवि' के रूप में विख्यात किया। इसके पश्चात इनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई, जिनमें पंचवटी (1925 ई०), झंकार(सन् 1929), साकेत(सन् 1931 ई०) तथा 'वशोधरा' (सन् 1932 ई०) आदि प्रसिद्ध है। गुप्त जी प्रमुख रूप से प्रवन्धकाव्य की रचना में सिद्धहस्त थे। खड़ी बोली का स्वरूप का निर्धारण करने एवं उसके विकास में गुप्त जी ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। कृतियाँ-गुप्त जी के लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रंथो में भारत भारती 'त्रिपथगा', 'साकेत', 'यशोधरा', 'द्वापर', 'नहुष', काबा और कर्बला आदि रचाएं उल्लेखनीय है। गुप्त जी की अन्य
हिन्दी साहित्य के गौरव राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन-परिचय
byDigital Knowledge
-
0