(1) जी मिचलाना (Morning Sickness)
गर्भावस्था का यह सामान्य कष्ट है जिसका सामना सभी गर्भवती स्त्री के लिए लगभग अनिवार्य सा होता है। गर्भवती स्त्री सुबह जब सोकर उठती है, तब उसका जी मिचलाने लगता है तथा सिर में चक्कर से आने लगता है। जी मिचलाने का कष्ट सामान्यतः गर्भावस्था के शुरुवाती दिनों में ही होता है तथा इसको गर्भावस्था की एक प्रमुख लक्षण भी माना जाता है। कुछ गर्भवती स्त्रियां तो इस कष्ट को सरलतापूर्वक सहन कर लेती है जबकि संवेदनशील औरते इसके कारण अत्यधिक घबराहट बेचैनी, भय का अनुभव करती है, जिससे उन्हें कभी-कभी उल्टी तक हो जाती है। कुछ स्त्रियों को यह कठिनाई भय, घबराहट और चिन्ता आदि के कारण और भी अधिक कष्टकारी लगती है।
इसे बचने के लिए गर्भवती स्त्री को स्वस्थ प्रसन्नचित रहना चाहिए । जी मिचलाने तथा सिर में चक्कर आने का यह कष्ट गर्भावस्था के प्रथम महीने से लेकर 2-3 महीने तक होता रहता है. तत्पश्चात स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
कारण (Causes) -
इस रोग या कष्ट का सर्वप्रमुख उत्तरदायी कारण संवेगात्मक असन्तुलन ही है. जिससे यह उग्र रूप धारण कर लेता है। सामान्यतः यह कार अत्यधिक चिन्ता, गृह-कलह, प्रसव पीडा का भय तथा घबराहट आदि के परिणामस्वरूप होता है। कुछ स्त्रियो को है, उनके जी प्रातःकाल भी मिचलाने, लगते है तथा सिर में चक्कर आने तथा उल्टी या वमन करने की समस्या का सामना करना पड़ता है।
उपचार (Treatment)
(1) गर्भवती स्त्री को अधिकाधिक प्रसन्न और प्रफुल्लित रखना चाहिए, जिससे अन्य कष्टों और परेशानियों के प्रति वह चिन्तित न हो सके।
(2) गर्भवती स्त्री को प्रातःकाल उठकर बिस्तर पर ही कुल्ला आदि कराकर थोड़े से भुने हुए चने, इलायची, सौफ, लोग, पान और बिस्कुट आदि ग्रहण कराने चाहिए तथा लिटाये रखना चाहिए। इससे जी मिचलान की अवधि न बीत जाये, तब तक बिस्तर पर लेट रहना हो गा।
(3) गर्भवती स्त्री को संभव हो तो हल्का और शीघ्र पच जाने वाला आहार ही खिलाना चाहिए, उसे ठोस और तला हुआ भोजन कदापि नहीं सेवन करना चाहिए।
(4) गर्भवती स्त्री को कभी भी बहुत अधिक मात्रा में भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। उसे थोडे-थोडे समय में थोड़ा थोड़ा ही भोजन करना चाहिए।अर्थात् थोड़े समय अन्तराल में कुछ न कुछ शीघ्र पाचक भोज्य सामग्री ग्रहण करते रहना चाहिए।
(5) उसको भोजन करते समय भी अधिक मात्रा में जल भी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इससे भी वमन या उल्टी होने की संभावना बढ़ती है। अत्यधिक वमन से गर्भस्थ भ्रूण के विकास वमन हो, तब भोजन के पूर्व और बाद में कुछ तक लेटकर विश्राम भी करना चाहिए।
(6) गर्भवती स्त्री को कभी मी खाली पेट नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इससे उल्टी होने की अधिक संभावना रहती है। उसको दिन में कम से कम 3-4 बार थोडी थोडी मात्रा में आहार लेना चाहिए
(7) आहार ग्रहण करने के बाद मिल्क आफ मैग्रीशिया (Milk ol Magnesia) भी लेना चाहिए, इससे उनकी पाचन शक्ति ठीक रहती है।
(9) यदि डॉक्टर अनुमति दे. तो वमन निरोधक दवाइयों का भी सेवन करना चाहिए इससे भी काफी लाभ प्राप्त होता है। अपने मन से दवाई का उपयोग नहीं करना चाहिए।
हृदय में जलन (Heart Burn)
गर्भावस्था में स्त्री को हृदय की जलन की शिकायत भी होने लगती है, जो गर्भवती स्त्री के लिए परेशानी और कष्ट का कारण बन जाती है। सामान्यतः हृदय की जलन एक प्रकार की अपच ही है। गर्भस्थ शिशु जब 6-7 मास का हो जाता है. तब यह जलन अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि स्त्री के गर्भाशय का भार और आकार बढ़ जाता है। यही पर चूंकि आमाशय स्थित होता है, इसलिए भोजन के आमाशय में पहुंचने पर उसके पाचन में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिए गर्भवती स्त्री को अधिक समय तक बैठे रहना उचित नहीं माना जाता है। इसी प्रकार चाट-पकोडी खट्टे मीठे तथा मिर्च-मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन भी पेट में वायु उत्पन्न करके इस रोग की उत्पत्ति करता है।
हृदय में जलन के कारण (Heart Burn Causes) -
(1) भोजन की पाचन क्रिया में बाधा उत्पन्न होना ।
(2) एक ही स्थान पर काफी समय तक निस्क्रिय बैठे रहना।
(3) अधिक चटपटे, मिर्च मसालेदार, तले और बासी भोजन खाना ।
उपचार (Treatment) -
(1) गर्भवती स्त्री को भोजन को अच्छी तरह से खूब चबा-चा कर खाना चाहिए।
(2) घी में तेल एवं अधिक मिर्च मसालेदार भोजन नहीं करना चाहिए।
(3) सायकाल का भोजन सोने के तीन घंटे पूर्व करना चाहिए, इससे भोजन पाचनशील हो जाता है।
(4) दोपहर या भोजन के बाद फल भी ग्रहण करना चाहिए। यदि फल से अपच हो, हो उनको धीमी आच पर पका कर ही खाया जाना चाहिए।
(5) प्रातःकाल और दोपहर को नीबू का रस पानी मिलाकर लेने से भी लाभ होता है।
(6) यदि संभव हो तो प्रातःकाल किसी बाग बगीचे में भ्रमण भी करना चाहिए।
(7) चिकिसक से पूछकर पाचन हेतु मिल्क आफ मैग्रेशिया भी लेना चाहिए।