कंकाल तंत्र के कार्य तथा कंकाल तंत्र के प्रकार

 कंकाल तंत्र   (SKELETAL SYSTEM)   

       

स्थल स शरीर की आकृति बनाये रखने, आन्तरांगों को सहारा देने, आंतरागों विस के विन्यास (arrangement) को सही स्थिति प्रदान करने तथा गमन करने के लिए अस्थियों (bones) व उपास्थियों (cartilages) की दृढ़ सजीव संरचनाओं का बना एक ढाँचा होता है, जो अस्थिपिंजर या कंकाल (skeleton) कहलाता है।

 जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें अस्थियों का अध्ययन किया जाता है अस्थि विज्ञान या ऑस्टिओलॉजी (osteology) कहलाती है। 

ऑस्टिओलोजी शब्द दो ग्रीक शब्दों ऑस्टिअन (ostean = bone = अस्थि) एवं लॉगोस (logos = study = अध्ययन) से मिलकर बना है


कंकाल के प्रकार (Types of Skeleton)  जन्तुओं में प्रायः निम्न दो प्रकार के कंकाल पाए जाते हैं 


जलस्थैतिक कंकाल 

वास्तविक कंकाल

                                                                                                                     

1.जलस्थैतिक कंकाल (HydrostaticSkeleton)


जब शरीर में उपस्थित तरल शरीर को सहारा देने का कार्य करता है, तो इसे जलस्थैतिक कंकाल कहते हैं। इस प्रकार का कंकाल हाइड्रा, गोल कृमियों (roundworms) चपटे कृमियों, (flatworms), और संघ ऐनेलिडा के जन्तुओं में मिलता है। इन जन्तुओं में पेशियों के उपयोग द्वारा तरल से भरे हुए कक्षों के आकार में परिवर्तन के फलस्वरूप आकार पर नियन्त्रण और गति होती है। यह तरल पेशियों पर दबाव डालता है जिसके परिणामस्वरूप पेशियों में संकुचन होता है। पेशियों में संकुचन एवं तरल का दाब, दोनों के मिले-जुले प्रभाव के कारण इन जन्तुओं का आकार निर्धारित होता है। जलस्थैतिक कंकाल जलीय वातावरण में अच्छी तरह से कार्य करता है। यह स्थल पर रहने वाले प्राणियों के लिए अधिक उपयोगी नहीं है।                                                                                                                                          


2. वास्तविक कंकाल (True Skeleton) 

इस कंकालीय ढाँचे का निर्माण कंकालीय ऊतकों (अस्थियों तथा उपास्थियों) से होता है। इनकी उत्पत्ति मीसोडर्म (mesoderm) से होती है। अस्थि तथा उपास्थि विशेष प्रकार के संयोजी ऊतक हैं। मैट्रिक्स में लवणों की उपस्थिति के कारण अस्थियाँ कठोर होती हैं जबकि कोण्ड्रॉइटिन (chondroitin) लवण की उपस्थिति के कारण उपास्थियों का मैट्रिक्स आनन्य (pliable) होता है। कंकाल के अध्ययन को अस्थि विज्ञान (Osteology) कहते हैं। वास्तविक कंकाल दो प्रकार का होता है-


 (i) बाह्यकंकाल (Exoskeleton)             

(ii) अन्त: कंकाल (Endoskeleton)


(i) बाह्यकंकाल(Exoskeleton) 

शरीर की त्वचा के बाहर दृढ़ रचनायें जो एपिडर्मिस या डर्मिस स्तर से विकसित होती हैं बाह्य कंकाल बनाती है, उदाहरण-जन्तुओं के शरीर पर किरेटिन से बने बाल, नाखून, खुर, सींग, चोंच, शल्क आदि। आर्थोपोडा संघ के जन्तुओं का बाह्यकंकाल काइटिन (chitin) का बना होता है। मौलस्का संघ के जन्तुओं का कैल्सियम युक्त खोल तथा कृमियों की क्यूटिकल (cuticle) भी बाह्यकंकाल ही है।  बाह्यकंकाल की रचना त्वचा द्वारा स्रावित पदार्थों द्वाराकंकाल के कार्य (Functions of Skeleton) वृद्धि के साथ बाह्यकंकाल शरीर से अलग (निर्मोचित) होता रहता है।                                                                                 

अन्तःकंकाल (Endoskeleton)

कशेरुकी प्राणियों में शरीर के अन्दर पाया जाने वाला सुदृढ़ कंकाल, जो अस्थियों (bone) एवं उपास्थियों (cartilages) का बना होता है, अन्तःकंकाल कहलाता है। अन्तःकंकाल की रचनायें संयोजी ऊतक (connective tissue) से बनी होती हैं। अस्थियाँ विभिन्न प्रकार के जोड़ों (joints) द्वारा एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं। अस्थियों के इन जोड़ों को अस्थि सन्धियाँ (bone joints) कहते हैं। इन सभी रचनाओं का पूरे शरीर में फैला एक ढाँचा या अस्थिपिंजर (skeletal frame-work) होता है। 

कंकाल के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है-                            

1. कंकाल शरीर की आकृति बनाये रखता है।                       

2. यह शरीर का ढाँचा या पिंजर (frame-work) बनाता है।  


3. आन्तरिक अंगों, जैसे- हृदय, वृक्क आदि को सुरक्षा प्रदान करता है।                                                                    

4. कंकाल अस्थियाँ गति एवं चलन में पेशियों को सहायता व सहयोग प्रदान करती हैं।                                                

 5. कर्ण अस्थियाँ ध्वनि सुनने एवं ध्वनि प्रवाहित करने में मदद करती हैं।                                                                

6. लम्बी अस्थियों की अस्थि गुहा में उपस्थित अस्थि मज्जा (bone marrow) द्वारा लाल रुधिर कणिकाओं (R.B.Cs.) व श्वेत रुधिर कणिकाओं (W.B.Cs.) का निर्माण होता है।                                                                       

 7. अस्थियों में उपस्थित लवण, जैसे- कैल्सियम, फॉस्फेट आवश्यकता पड़ने पर रुधिर में एकत्रित होकर अंगों की क्रियाशीलता बढ़ाते हैं।                                                   

8. लैरिंक्स (larynx) की उपास्थियाँ, ट्रैकिया (trachea) के उपास्थिल छल्ले तथा पसलियाँ (ribs) मिलकर श्वासोच्छ्वास।                                                            

9. करोटि (skull) की अस्थियाँ मस्तिष्क की रक्षा करती हैं। 




मानव का कंकाल तन्त्र (HUMAN SKELETAL SYSTEM)
HUMAN SKELETAL SYSTEM

मानव का कंकाल तन्त्र अस्थियों तथा उपास्थियों का बना एक ढाँचा या अस्थि पंजर होता है। मनुष्य में लगभग 206 अस्थियाँ और कुछ उपास्थियाँ होती हैं जो मांसपेशियों से घिरी होती है।मनुष्य के कंकाल तन्त्र (skeletal system) को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है- 

(i) अक्षीय कंकाल (axial skeleton) 

(ii) उपांगीय कंकाल (appendicular skeleton)  



(1) अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton) 

इसके अन्तर्गत शरीर की मुख्य अक्ष पर वितरित करोटि मेरुदण्ड  पसलियाँ  तथा उरोस्थि आदि की 80 अस्थियाँ शामिल हैं। अक्षीय कंकाल की अस्थियों को अध्ययन की सुविधा के लिए निम्न तीन भागों में विभाजित किया जाता है- 

(i) करोटि (Skull) 29 

(ii) कशेरुक दण्ड (Vertebral column) 26 

(iii) वक्षीय ढाँचा (Thoracic cage) 25 कुल अस्थियाँ = 80 Maxilla बालशिशुओं में कशेरुकाओं की संख्या 33 होती है।


[1] करोटि (Skull) करोटि को चार प्रमुख भागों में विभक्त किया जाता है- (i) कपाल घिरी (cranium), (ii) चेहरे की अस्थियाँ (facial bones), (iii) हाइऑइड (Hyoid), (iv) कर्ण अस्थिकायें (ear ossicles)


1. कपाल (Cranium)

मस्तिष्क अत्यधिक संवेदनशील अंग है, सुरक्षा प्रदान करने के लिए 8 अस्थियों का बना कपाल होता है। मस्तिष्क के लिए मस्तिष्क खोल (brain cage) का निर्माण करता उसे कपाल गुहा (cranial cavity) कहते हैं। कपाल की 8 अस्थियाँ नलिखित प्रकार हैं-

 फ्रॉन्टल अस्थि (Frontal bone) इसकी संख्या 1 होती है। यह अस्थि कपाल पर सबसे आगे स्थित होती है। यह माथा, नेत्र (कोटरों की छत व कपालगुहा के तल के अधिकांश भाग) को निर्मित करती है।

 ऑक्सीपिटल अस्थि (Occipital bone): इसकी संख्या 1 होती है। यह खोपड़ी (करोटि) के पश्च तथा अधिकांश आधार भाग का निर्माण करती है।

स्फिनॉइड अस्थि (Sphinoid bone) इसकी संख्या 1 होती है। यह कपाल गुहा के तल के मध्य भाग का निर्माण करती है। 

टेम्पोरल अस्थियाँ (Temporal bones) इनकी संख्या 2 होती हैं। ये अस्थियाँ कपाल गुहा के तल का कुछ भाग तथा खोपड़ी के पाश्र्तों के निचले भाग का निर्माण करती हैं। 


एथमॉइड अस्थियाँ (Ethmoid bones) इनकी संख्या 2 होती है। ये कपाल गुहा की तली के अग्रभाग के मध्य में नेत्र कोटरों के मध्य में तथा स्फिनॉइड के आगे स्थित होती हैं। ये नासा पट्ट के ऊपरी भाग, नासागुहाओं की पार्श्व दीवारों तथा नेत्र कोटरों की मध्य दीवार का निर्माण करती हैं।

पैराइटल अस्थियाँ (Parietal bones)इनकी संख्या 2 होती हैं। ये फ्रॉन्टल अस्थि के पीछे की ओर जुड़ी होती है। ये कपाल गुहा की छत तथा पार्श्व भागों का निर्माण करती हैं। 

कपाल की उपरोक्त अस्थियाँ टेढ़े-मेढ़े सीवनों (sutures) द्वारा एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं। ये सीवने बाहरी आघातों को कम करने का कार्य करती हैं। कपाल में नीचे की ओर एक महारन्ध्र (foramen magnum) स्थित होता है। इस महारन्ध्र की सहायता से मस्तिष्क रीढ़ रज्जु (spinal cord) से जुड़ा रहता है। इस महारन्ध्र के दोनों ओर स्थित एक-एक अण्डाकार अनुकपालीय अस्थिकन्द तथा उसके ऑक्सीपिटल कॉण्डाइल कशेरुकदण्ड की एटलस कशेरुक से सन्धि करते हैं। अतः मनुष्य की करोटि द्विकन्दीय (dicondylic) होती है, जिसके फलस्वरूप सिर को सरलतापूर्वक हिलाया-डुलाया जा सकता है। 


2. चेहरे की अस्थियाँ (Facial bones)

वह अस्थियाँ जो चेहरे का कंकाल बनाती हैं चेहरे की अस्थियाँ कहलाती हैं। ये चेहरे पर उपस्थित संवेदी अंगों की रक्षा करती हैं। इनकी संख्या 14 होती है। चेहरे की अस्थियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती है-

 (i) नाक की अस्थियाँ (Nasal bones) इनकी संख्या 2 होती हैं। ये माथे के नीचे नाक के सेतु के पास वाला भाग बनाती हैं। ये आयताकार होती हैं।

 (ii) लैक्राइमल (Lacrimal) इनकी संख्या 2 होती हैं। ये चेहरे की सबसे छोटी व चपटी अस्थियाँ हैं। ये नेत्र कोटरों की मध्य भित्ति का एक भाग निर्मित करती हैं।

 (iii) पैलेटाइन (Palatine) ये संख्या में दो व L-आकार की अस्थियाँ हैं। ये कठोर तालु के पश्च भाग, नेत्र कोटरों के तल का थोड़ा भाग, नासा गुहाओं की पार्श्व भित्ति का निर्माण करती है। 

(iv) वोमर (Vomer) यह एक छोटी चपटी अस्थि है। यह नासापट्ट के पश्च भाग का निर्माण करती है। 

(v) टर्बिनल्स (Terbinals)  इनकी संख्या 2 होती हैं। इन अस्थियों के उभार नाक की पार्श्व दीवारों के नीचे के भाग में उभरे रहते हैं। 

(vi) मैक्सिलरी या मैक्सिला (Maxillary or Maxilla)  इनकी संख्या 2 होती है। ये दोनों अस्थियाँ ऊपरी जबड़े एवं चेहरे के अधिकांश भाग का कंकाल बनाती हैं। 

(vii) जाइगोमैटिक (Zygomatic) इनकी संख्या 2 होती है। ये अस्थियाँ गालों के ऊपरी उभार का निर्माण करती हैं। 

(viii) मैन्डिबल (Mandible)  यह अस्थि निचले जबड़े में उपस्थित होती हैं मैन्डिबल मानव शरीर की सबसे मजबूत अस्थि है। यह गतिशील तथा भोजन चबाने में सहायक होती है। 

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