गुणसूत्र की परिभाषा तथा गुणसूत्र के कार्य ((What are The Functions of Chromosomes)

 


गुणसूत्र की परिभाषा (Chromosomes) इन्टरफेज (interphase) अवस्था में केन्द्रक में उपस्थित केन्द्रक द्रव के भीतर क्रोमेटिन का धागों सदृश रचनाओं से बना जाल फैला रहता है इस जाल को क्रोमेटिन जालिका  कहते हैं।


 कोशा विभाजन के समय क्रोमेटिन जालिका की धागे के समान रचनाएँ छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में स्पष्ट हो जाती हैं। क्रोमेटिन पदार्थ के ये छोटे टुकड़ें गुणसूत्र (chromosomes) कहलाते हैं। इनकी औसतन लम्बाई तथा व्यास क्रमशः 0.5 से 3.0 होता है। 

गुणसूत्र की खोज

सन् 1888 में वाल्डेयर (Waldeyer) ने केन्द्रक में पायी जाने वाली और गहरा अभिरंजन (dark stain) लेने वाली सूत्री रचनाओं को गुणसूत्र नाम दिया। 



प्रोकैरियोटिक गुणसूत्र  (Prokaryotic chromosomes)


प्राकैरियोटिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, प्रो तथा कैरियोन । अतः इन कोशिकाओं में केन्द्रक नहीं होता है। इनमें आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) द्विवलयकी (double stranded) DNA के एक लम्बे अणु के रूप में होता है तथा एक बड़े वृत्ताकार तथा अवलित  गुणसूत्र के रूप में रहता है। यह केवल द्विवलयकी DNA का बना होता है तथा कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में रहता है। इस को केन्द्रकाभ या न्यूक्लिओएड (nucleoid) कहते हैं।


यूकैरियोटिक गुणसूत्र (Eukaryotic chromosomes)

 यूकैरियोटिक कोशिकाओं में गुणसूत्र तंतुमय होते हैं, जो अच्छी प्रकार से विकसित सत्य केन्द्रक (true nucleus) में कोशिका विभाजन (cell division) के समय दिखायी देते हैं। इनमें केन्द्रक के DNA अणु क्षारकीय प्रोटीन हिस्टोन (histone) के साथ मिलकर DNA प्रोटीन कॉम्प्लेक्स  बनाते हैं, जिन्हें क्रोमेटिन (chromatin) या केन्द्रकीय हिस्टोन (nucleo histone) कहते हैं। ये क्रोमेटिन तंतु, कोशिका चक्र की अन्तरावस्था (interphase) के केन्द्रक में, गहरे रंग के जाल के रूप में केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) में पड़े रहते हैं। पूर्वावस्था (prophase) में ये संघनित (condensed) होकर छड़नुमा गुणसूत्र (rod shaped chromosome) का निर्माण कर लेते हैं। 


AA qगुणसूत्र की आकृति (Shape of Chromosome)


सामान्यतः कोशिका विभाजन की पश्चावस्था में ही गुणसूत्रों की आकृति का अध्ययन किया जाता है। मध्यावस्था (metaphase) में पतली छड़ों (slender rods) के रूप में दिखायी देने वाले गुणसूत्रों की आकृति पश्चावस्था (anaphase) में U, V, L, J या S के समान हो जाती है। इनकी आकृति सेन्ट्रोमीयर (centromere) या काइनेटोकोर (kinetochore) पर निर्भर करती है,


गुणसूत्रों के प्रकार (Types of Chromosome)


   

यूकैरियोटिक कोशाओं में गुणसूत्र दो प्रकार के होते हैं-


 

1. अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) : 

इनकी संख्या लिंग गुणसूत्रों (sex chromosomes) की अपेक्षा अधिक होती है तथा ये लिंग निर्धारित करने में सक्षम नहीं होते, उदाहरण- मानव के 23 जोड़े गुणसूत्रों में से 22 जोड़ी अलिंग गुणसूत्र होते हैं, जो नर व मादा दोनों में समान होते संदेशवाल हैं। अतः ये लिंग निर्धारित नहीं करते। ये होमोमोरफिक (homomorphic) कहलाते हैं।  


 2. लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes)

 ये गुणसूत्र लिंग निर्धारित करने में सक्षम होते हैं, उदाहरण- मानव में 22 जोड़ी अलिंग गुणसूत्र (autosomes) के अतिरिक्त एक जोड़ी गुणसूत्र अर्थात् 23वें जोड़ी गुणसूत्र नर व मादा लिंग निर्धारित करते हैं, जिन्हें लिंग गुणसूत्र (sex chromosmes) कहते हैं। जैसे- मानव में Y-गुणसूत्र। मादा निर्धारक * दिखायी लिंग गुणसूत्र गाइनोसोम (gynosome) कहलाते हैं, नर निर्धारक लिंग गुणसूत्र एन्ड्रोसोम मध्याक (androsome) कहलाते हैं, जैसे- मानव में X-गुणसूत्र।  ये हेटरोमोरफिक (heteromorphic) कहलाते हैं। 


X-गुणसूत्र की खोज हेंकलिंग (Henkling, 1891) ने की जबकि Y-गुणसूत्र की खोज स्टीवन्स (Stevens, 1902) ने की। 


गुणसूत्र की संरचना (Structure of Chromosome)


 गुणसूत्रों की संरचना का अध्ययन कोशिका विभाजन की बीचवाली अवस्था  (metaphase) में किया जाता हैं। संरचना के आधार पर एक क्रोमोसोम को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-


 1. पेलिकिल (Pelicle) 

यह गुणसूत्र का बाहेर  का पतला आवरण होता है। 

2. मैट्रिक्स (Matrix) 

यह प्रोटीन, RNA और लिपिड्स का बना गुणसूत्र का एक तरल पदार्थ होता है, जिसमें क्रोमोनीमेटा धँसे होते हैं। 

3. क्रोमोनीमेटा (Chromonemata)

 ये DNA तथा हिस्टोन प्रोटीन (histone protein) के कुंडलित धागे (threads) होते हैं, जो बहुत सारे गुणसूत्र बनाते हैं। दो क्रोमेटिड वाले एक क्रोमोसोम में दो क्रोमोनीमेटा (chromonemata) होते हैं जबकि पश्चावस्था गुणसूत्र में केवल एक क्रोमोनीमा (chromonema) होता है। 

4. प्राथमिक संकीर्णन या केन्द्रमेल (Centromere)

 मध्यावस्था व पश्चावस्था के दौरान गुणसूत्र में दिखाई देने वाला अल्परंजित क्षेत्र के रूप में एक संकीर्णन होता है, जो प्राथमिक संकीर्णन (primary constriction) कहलाता है। इसमें एक प्लेट सदृश संरचना होती है. acentric Metacent जिसे सेन्टोमीयर (centromere) या काइनेटोकोर (kinetochore) कहते हैं। इन पर तर्क तंतु (spindle fibres) या माइक्रोटिब्यूलस (microtubules) जुड़ते हैं।

 5. द्वितीयक संकीर्णन या केन्द्रिक संगठक

 (Nucleolar - तथा प्रकार organiser) प्राथमिक संकीर्णन के अतिरिक्त दूसरा संकीर्णन द्वितीयक घर गुणसूत्र के मध्य संकीर्णन (secondary constriction) कहलाता है। जब गुणसूत्र में भागों में बाँट देता केन्द्रिका (nucleolus) से सम्बन्धित द्वितीयक संकीर्णन होता है तो इसे केन्द्रिक संगठक क गुणसूत्र (nucleolar organising chromosome) तथा उस स्थान को केन्द्रिका संगठक क्षेत्र (nucleolar organising region) कहते है 


6. सेटेलाइट (Satellite) 

यह क्रोमेटिन के एक तंतु द्वारा गुणसूत्र से जुड़ा भाग है जो द्वितीयक संकीर्णन से आगे का भाग होता है। यह गोल, लम्बा या घुण्डीनुमा होता है। 


7. टीलोमीयर (Telomere)

ये गुणसूत्र के अन्तिम या विशिष्ट सिरे हैं जो गुणसूत्र को एक-दूसरे के साथ जुड़ने (fusion) से रोकते हैं। 8. कोमोमीवर (Chromomere) ये अन्तरावस्था (interphase) के गुणसूत्र में दिखायी देते हैं। ये दृढ़ वलित DNA (tightly folded DNA) के भाग होते हैं, जो पॉलीटीन (polytene) गुणसूत्र में स्पष्ट दिखायी देते हैं।



 गुणसूत्रों का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Chromosomes)


 यूकैरियोटिक गुणसूत्र, 40% DNA, 1.5% RNA, 50% हिस्टोन प्रोटीन, 8.5% नॉन-हिस्टोन प्रोटीन तथा धात्त्विक आयन, जैसे- Mg2+, Ca2+, RNA तथा गुणसूत्र निर्माण के लिए आवश्यक अन्य आयनों के बने होते हैं।



गुणसूत्र के कार्य (Functions of Chromosomes) 


1. गुणसूत्र आनुवंशिक सूचनाओं के वाहक हैं। ये आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाते हैं।


 2. ये जीवों की विभिन्न जैविक क्रियाओं के नियन्त्रण में सहायक होते हैं। 


3. इनके द्वारा जीवों में अचानक परिवर्तन होने से, पीढ़ी दर पीढ़ी विकास एवं विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। 


4. लिंग गुणसूत्र जीवों में लिंग निर्धारण में सहायक होते हैं, जैसे- मनुष्य में X लिंग गुणसूत्र मादा तथा Y लिंग गुणसूत्र नर निर्धारित करता है।


 5. ये विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का विभेदन (differentiation of cells) करते हैं।


 6. जीवन की निरंतरता को बनाये रखने के लिए गुणसूत्रों में द्विगुणन (duplication) होता है।


 7. यें प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) का नियन्त्रण करते हैं, जो कोशिका विभाजन (cell division) तथा कोशिका वृद्धि (cell growth) के लिए आवश्यक

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