नील हरित शैवाल तथा साइनोबैक्टीरिया के प्रमुख लक्षण,आर्थिक महत्व तथा कोशिकीय संरचना

 साइनोबैक्टीरिया या नील-हरित शैवाल (Cyanobacteria or Blue-Green Algae)


साइनोबैक्टीरिया संरचना के आधार पर जीवाणु के समान ही होते है।ये सरल पादप के अन्तर्गत वर्गीकृत होते हैं।इन्हें नील-हरित शैवाल (blue-green algae) कहते हैं। इनकी कोशिकाओं में लवक (plastids) का पूर्णतः अभाव होता है, इनमें नील-हरित वर्णक फाइकोसायनिन (blue green pigment phycocyanin) पाया जाता है।

साइनोबैक्टीरिया या नील-हरित शैवाल


साइनोबैक्टीरिया के प्रमुख लक्षण (Diagnostic Characteristics of Cyanobacteria) 


 

1. कोशिका भित्ति mucopolypeptides द्वारा निर्मित होती है। 


2. कोशिका प्रोकैरियोटिक (prokaryotic) होती है। म्यूकोपोलीपेप्टाइड्स सा 


3. कोशिका में लवक (plastids) एवं पायरीनॉइड (pyrenoids) का अभाव होता है। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में केवल थाइलैकॉइड्स (thylakoids) बिखरे रहते हैं।


4.कोशिका में ग्लाइकोजन तथा साइनोफाइसिन, ग्रेन्यूल तथा सायनोफीसियन संचित भोजन के रूप में मिलते हैं। 


5. जनन केवल कायिक एवं अलैंगिक होता है। 


6.कोशिका में कशाभिकाएँ (flagella) जीवन चक्र की किसी भी अवस्था में नहीं पायी जाती हैं। साइनोबैक्टीरिया की 

7.मुख्यतः ये अलवण जल में पाये जाते हैं, किन्तु कुछ जातियाँ समुद्री जल में भी उपलब्ध होती हैं। 


साइनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Cyanobacteria) 


सायनोबैक्टीरिया से लाभ साइनोबैक्टीरिया का उपयोग  घोंघे, मछलियों एवं मेंढकों के भोजन के रूप में किया जाता है।

2. साइनोबैक्टीरिया प्रकाश-संश्लेषी जीव हैं। साइनोबैक्टीरिया कार्बनिक भोजन का निर्माण करने में CO₂ का उपयोग करके ऑक्सीजन निष्कासित करते हैं, जिससे वातावरण शुद्ध अर्थात् ऑक्सीकारी वायुमण्डल का निर्माण होता है। 

3. प्रोटीन, विटामिन (उदाहरण- विटामिन बी कॉम्प्लेक्स) एवं खनिजों की आपूर्ति स्पिरुलीना (Spirullina) द्वारा होती है। इसका उपयोग बिस्कुटों के निर्माण में भी किया जाता है। 

4. साइनोबैक्टीरिया का खाद के रूप में उपयोग होता  है। इनकी उपस्थिति से मृदा को नाइट्रोजन, पोटैशियम एवं फॉस्फेट की आपूर्ति होती है। नील-हरित शैवाल से निर्मित कृत्रिम खाद अर्थात् जैविक खाद अधिक लाभप्रद होती है। 


5.नील-हरित शैवालों में अलैंगिक जनन की  क्षमता के कारण शीघ्रता से इनकी वृद्धि होती है और ये पूरे खेत में फैल जाते हैं। वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नील-हरित शैवालों की कुछ जातियाँ  सरलतापूर्वक करती हैं। इनका उपयोग धान के खेतों की मृदा में नाइट्रोजन की आपूर्ति के लिए किया जाता है।

5. बंजर भूमि (barren land) को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करने के लिए बंजर भूमि में उगाया जाता है। जिसके फलस्वरूप मृदा के क्षारीय स्वभाव में कमी आती है। इनके मृत होने पर कार्बनिक पदार्थों की अधिकता के कारण मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। 

6. मृदा संरक्षण में ये महत्त्वपूर्ण सहयोग करते हैं। ये मृदा के कणों को परस्पर बाँधे रखने का कार्य करते हैं

7.का उपयोग प्रयोगशालाओं में शोध कार्यों में किया जाता है,  


साइनोबैक्टीरिया का हानिकारक प्रभाव (Harmful effect of Cyanobacteria)


1. ये पेयजल को दूषित कर देते हैं। साइनोबैक्टीरिया की अत्यधिक मात्रा से जल में दुर्गन्ध हो जाती है जल पीने योग्य नहीं रहता है और  


2.साइनोबैक्टीरिया से हानि यह होती है कि वाटर ब्लूम (water bloom) की स्थिति उत्पन्न होती है। इसके अन्तर्गत जल में CO₂ की मात्रा अत्यधिक होने के कारण जल में दुर्गन्ध एवं विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है। जलीय जन्तुओं को श्वास लेने में कठिनाई होने लगती है और अन्ततः उनकी मृत्यु हो जाती है। बड़े कशेरुकी जन्तु, उदाहरण भैंस पक्षी आदि इस जल का सेवन करने से संक्रमित हो जाते हैं।

साइनोबैक्टीरिया की कोशिकीय संरचना (tructure of a Cell of Cyanobacteria)

साइनोबैक्टीरिया के प्रमुख लक्षण


 में साइनोबैक्टीरिया की एक कोशिका बैक्टीरियल कोशिका से अपेक्षाकृत बड़ी होती है, किन्तु इनमें कशाभ का अभाव होता है। प्रत्येक कोशिका स्पष्ट रूप से कोशिका भित्ति (तीन से चार परतों की निर्मित), कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रकाय में भिन्नित होती है। इनमें बड़ी रिक्तिकाएँ, माइटोकॉण्ड्यिा, एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम एवं गॉल्जीकाय का अभाव होता है। इनकी कोशिकाओं में थाइलैकॉइड, राइबोसोम्स एवं कोशिका अन्तर्वेशन मिलते हैं। 


1. कोशिका भित्ति (Cell wall)

कोशिका भित्ति पेप्टिडोग्लाइकन की निर्मित महीन व दृढ़ संरचना होती है। देहभित्ति के बाहर चारों ओर चिपचिपा आवरण अर्थात् श्लेष्मी आच्छद् (mucilaginous sheath) होता है, जिसमें बाह्य वातावरण से जलशोषित करने की अभूतपूर्व क्षमता होती है। परिणामस्वरूप शुष्क वातावरण में अर्थात् सूखे की स्थिति में भी कोशिका को कोई हानि नहीं होती है।

2. कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)

साइनोबैक्टीरिया कोशिका का कोशिकाद्रव्य बैक्टीरियल मीसोसोम के समान होता है। कोशिकाद्रव्य के चारों ओर कोशिका झिल्ली/प्लाज्मा मेम्ब्रेन या प्लाज़्मालेमा स्थित होती है। कोशिकाद्रव्य अन्तर्वलित होकर लैमेलोसोम (lamelosome) निर्मित करता है। कोशिकाद्रव्य का भीतरी भाग रंगहीन सेन्ट्रोसोम तथा बाहरी भाग रंगीन क्रोमोप्लाज्म होता है। कोशिकाद्रव्य के अन्दर निम्नलिखित रचनायें उपस्थित होती हैं - 


(a) केन्द्रकाय या केन्द्रककाय (Nucleoid or nuclear body) केन्द्रकाय अनावरत एवं वर्तुल डी.एन.ए. की कुण्डलित सघन संरचना होती है। 

(b) राइबोसोम्स (Ribosomes) : सामान्यतः राइबोसोम 70S श्रेणी के होते हैं। कोशिकाद्रव्य में पॉलीराइबोसोम भी मिलते हैं। 

(c) संचित भोजन (Reserve food) वालुटिन कण (volutin granules) के अतिरिक्त इसके अन्तर्गत -ग्रेन्यूल्स, साइनोफेसियन स्टार्च, ẞ-ग्रेन्यूल्स, लिपिड ग्लोब्यूल्स एवं साइनोफायसिन प्रोटीन ग्रेन्यूल्स (protein granules) होते हैं। 

(d) गैसीय रिक्तिकाएँ (Gas vacuoles) इन रिक्तिकाओं में उपापचयी गैसें भरी होती हैं। इनकी उपस्थिति के कारण कोशिकाओं में उत्प्लावन क्षमता होती है, जिससे ये ऊपर के जल का भार सरलतापूर्वक वहन कर लेती हैं। इन रिक्तिकाओं में प्रदूषित वायु एवं विकिरणों को अपवर्तित करने की भी क्षमता होती है। रिक्तिकाओं का आकार षट्‌कोणीय होता है। 

(e) थाइलैकॉइड (Thylakoids) ये अन्य जीवाणुओं में पाये जाने वाले क्रोमेटोफोर्स के समान मेम्ब्रेन से घिरी चपटी संरचनाएँ हैं। इनमें प्रकाश-संश्लेषण की क्षमता होती है। सूक्ष्म एवं कणिकामय संरचनाएँ, जैसे-फाइकोबिलिसोम्स, थाइलैकॉइड की बाह्य सतह से संलग्न रहती हैं। थाइलैकॉइड मेम्ब्रेन में क्लोरोफिल एवं कैरोटिनॉइड उपस्थित होते हैं।


साइनोबैक्टीरिया कहा पाए जाते है।(Habit and Habitat of Cyanobacteria) 


साइनोबैक्टीरिया सर्वत्र अर्थात् पृथ्वी के विभिन्न भागों एवं विभिन्न वातावरणीय दशाओं में पाए जाते है।  


साइनोबैक्टीरिया में जनन किस प्रकार का होता है।


साइनोबैक्टीरिया में जनन दो प्रकार का होता है,लैंगिक जनन वा कायिक जनन कायिक जनन विखण्डन विधि द्वारा होता है, इसके अन्तर्गत एककोशिकीय साइनोबैक्टीरिया में द्विविभाजन द्वारा गुणन होता है। और जनन क्रिया सम्पन्न होती है, उदाहरण - नॉस्टॉक एवं ओसिलेटोरिया। खण्डन विधि में तन्तुरूपी साइनोबैक्टीरिया के तन्तु के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं, जिन्हें (hormogonia) कहते हैं प्रतिकूल परिस्थितियों में नॉस्टॉक के तंतुओं की कुछ कोशिकाएँ खाद्य पदार्थ संग्रहित कर एक विशेष संरचना का निर्माण करती है, जिसे एकाइनीट्स (akinetes) कहते हैं। एकाइनीट्स (akinetes) अनुकूल वातावरण में अंकुरित होकर नॉस्टॉक के तंतु निर्मित करती हैं। अलैंगिक जनन के अन्तर्गत एण्डोस्पोर का निर्माण होता है, उदाहरण - ग्लिओकैप्सा । स्पोर का निर्माण माइक्रोसिस्टिस में होता है तथा एक्सोस्पोर का निर्माण चाइमौसाइफोन (Chamiaesiphon) में होता है। नील-हरित-शैवाल/सायनोबैक्टीरिया में अलैंगिक जनन निम्नवत् दो प्रकार से होता है- 1. अन्तःबीजाणु के निर्माण द्वारा जनन जीवाणु की कोशिका का कोशिकाद्रव्य अनुकूल परिस्थिति


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