आनुवंशिक विकार (Genetical Disorder)
1.फिनाइलकीटोन्यूरिया
2.दात्र कोशिका अरक्तता
3.रंजकहीनता (Albinism)
4.ऐल्केप्टोन्यूरिया (Alkaptonuria)
5.अति मादाएँ एवं अति-अति मादाएँ (Super female and meta super female)
जीन्स या गुणसूत्रों की अपसामान्यताओं के कारण आनुवंशिक विकार उत्पन्न होते हैं,ये आनुवंशिक विकार मानव में जन्म से होते है।आनुवंशिक विकार 100•/• में 1•/• लोगो में ही आनुवंशिक विकार के लक्षण दिखाई देते है।माता पिता के कुछ अनुवांशिकी विकार उनकी संतानों में पहुंचे है। जो एक प्रकार के रोग होते है। मानव में सभी आनुवंशिक विकार वंशागत नहीं होते है।कुछ अन्य आनुवंशिक विकार किसी पीढ़ी में उत्परिवर्तन (mutation) या डी०एन०ए० के द्विगुणन में सम्भावित त्रुटियों के कारण उत्पन्न होते हैं।कुछ प्रकार के कैंसर कुछ मानवों में वंशागत/आनुवंशिकी कारणों से, कुछ मानवों में उत्परिवर्तन के कारणों से तथा कुछ मानवों में आनुवंशिक (non-genetic) कारणों से भी उत्पन्न होते हैं।
आनुवंशिकी रोग (genetical disorder)
फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria, PKU)
फिनाइलकीटोन्यूरिया रोग की पहचान एवं अध्ययन बच्चों में सर्वप्रथम डॉ० विलार्ड सेन्टरवॉल (Dr. Willard Centerwall) ने किया
Phenylketonuria, PKU की कमी से कुछ व्यक्तियों में अल्पबुधिता उत्पन्न हो जाती है। जिसे फिनाइलकीटोन्यूरिया रोग कहते हैं। इस रोग के कारण व्यक्ति में खून में फिनाइल ऐलेनीन की मात्रा लगातार बढ़ती रहती है और मूत्र के साथ निकलती रहती है। के रक्त में फिनाइल ऐलेनीन की कुछ मात्रा शरीर के विभिन्न ऊतकों में भी संग्रहित होने लगती है।इस रोग से पीड़ित व्यक्ति तंत्रिका ऊतक में इसके प्रभाव से मस्तिष्क के विकास में बुरा असर पड़ता है,जिसके कारण में अल्पबुद्धिता (mental deficiency) उत्पन्न होती है।जिसके कारण वृद्धि रुक जाती है।मूत्र पसीना बदबूदार हो जाता है।
Dr. Willard Centerwall ने इसकी पुष्टि के संदर्भ में एक परीक्षण किया
उन्होंने बताया कि स्वस्थ बच्चों के गीले डाइपर पर यदि 10% घोल फेरिक क्लोराइड लग दिया जाये तो घोल लगे स्थान पर एक पीले रंग का धब्बा दिखायी देगा और यदि इस रोग से पीड़ित बच्चे के गीले डाइपर पर यह फेरिड क्लोराइड का घोल लगाया जाये तो धब्बे का रंग हरा हो जाता है। इस रोग के बचाव के लिए खाने में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। लाखों बच्चों में केवल एक बच्चा ही फिनाइलकीटीन्यूरिया रोग से ग्रसित पाया जाता है।
दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia):
दात्र कोशिका अरक्तता एक उपापचयी रोग (metabolic disease) हैं। इस रोग का प्रमुख कारण हीमोग्लोबिन की आण्विक संरचना (molecular structure) में होने वाला परिवर्तन है। इस रोग का प्रमुख दायित्व एक अप्रभावी जीन (recessive gene) का होता है जो समयुग्मजी (homozygous) अवस्था में केवल अपना घातक (lethal) प्रभाव दिखाती है, परिणामस्वरूप कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia) रोग हो जाता है।
हीमोग्लोबिन की बीटा श्रृंखला (B-chain) में छठे स्थान पर ग्लुटेमिक अम्ल (glutamic acid) का स्थान वैलीन (valine) अमीनो अम्ल ले लेता है।
असामान्य हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का वहन नहीं कर सकता है। सामान्य लाल रुधिराणु सिकुड़कर हँसिए के आकर (sickle shaped) के हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में घातक रक्ताल्पता (anaemia) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और कुछ समय पश्चात व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। मानव में सीकल सेल ऐनीमिया की वंशागति होता है।
फिनाइलऐलेनीन होमोजेन्टिसिक अम्ल
gene P enzyme टाइरोसीन gene T •
होमोजेन्टिसिक enzyme अम्ल gene H रुधिर व मूत्र ऐल्केप्टोन्यूरिया में होमा no enzyme ऐल्केप्टॉन युक्त मूत्र जब वायु के सम्पर्क में आता है तो इसका रंग काल पड़ जाता है। एक प्रभावी जीन (dominant gene) द्वारा निर्मित एक आवश्यक एन्जाइम स्वस्थ मानव में होमोजेन्टिसिक अम्ल का विखण्डन ऐसिटो ऐसीटिक अम्ल (aceto acetic acid) में कर देता है।
रंजकहीनता (Albinism)
एक अप्रभावी जीन (recessive gene) के कारण रंजकहीनता (albinism) की स्थिति उत्पन्न होती है। रंजकहीनता से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में मैलेनिन रंगा पदार्थ (melanin pigment) का संश्लेषण नहीं होता है। यदि विषमयुग्मकी व्यक्ति स्त्री या पुरुष सामान्य वर्णक युक्त होते हैं तो इनके विवाह केबाद इनकी संतानों में रंजक हीनता की समानता होती है। किसी रंजनिन स्त्री का विवाह यदि सामान्य व्यक्ति से होता है तो विवाह उपरांत उनके संताने विषमयुग्मकी वाहक होने के कारण सामान्य वर्णक युक्त होती है।पदार्थ का निर्माण टायरोसीन एमीनो अम्ल के द्वारा होता है। एक एन्जाइम की उपस्थिति में टायरोसीन द्वारा डाइहाइड्रॉक्सी फिनाइल एलैनीन (dihydroxy phenyl alanine, DOPA) का निर्माण होता है। मैलेनिन इसी से निर्मित होता
ऐल्केप्टोन्यूरिया (Alkaptonuria)
एल्केप्टोन्यूरिया एक जैव-रासायनिक रोग है। यह रोग सन्तान में एक जोड़ी समयुग्मकी अप्रभावी जीन (homologous recessive gene) के द्वारा जन्म के समय से ही पहुँचता है। इस रोग से ग्रसित मानव के शरीर की कोशिकाओं में होमोजेन्टिसिक अम्ल (homogentisic acid) एकत्रित होने लगता है, जो मूत्र के साथ एल्केप्टॉन (alkapton) के रूप में उत्सर्जित होता रहता इस रोग का सर्वप्रथम अध्ययन गैराड (Garrod) ने किया।
5. थैलेसीमिया (Thalassemia)
थैलेसीमिया रोग उत्परिवर्तित अप्रभावी जीन (mutated recessive gene) द्वारा नियन्त्रित होता है। इस रोग से पीड़ित मानव में हीमोग्लोबिन का संश्लेषण नहीं होता है। यह रोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है- (i) थैलेसीमिया मेजर रोग (ii) थैलेसीमिया माइनर रोग
(i) थैलेसीमिया मेजर रोग (Thalassemia major disease)
यह रोग उस स्थिति में होता है जब जीन समयुग्मकी (homozygous) स्थिति में होता है। इस रोग की भयानक स्थिति (प्रभाव) के फलस्वरूप रोगी की बाल्यावस्था में ही मृत्यु हो जाती है।
(ii) थैलेसीमिया माइनर रोग (Thalassemia minor disease)
यह रोग उस स्थिति में होता है जब जीन विषमयुग्मकी (heterozygous) अवस्था में होता है। इस रोग का प्रभाव सामान्य रहता है। इसे कूले अरक्तता (Cooley's anaemia) भी कहते है।(ⅰ) थैलेसीमिया मेजर रोग से पीड़ित व्यक्ति में बीटा ग्लोबिन (beta globin) का संश्लेषण नहीं होता है जिससे बीटा श्रृंखला का निर्माण नहीं होता हैं। ऐसे व्यक्ति में भ्रूणीय हीमोग्लोबिन (foetal haemoglobin) होता है। जिसमें एल्फा श्रृंखला (alpha chain) भ्रूण की भाँति होती है। (ii) भ्रूणीय हीमोग्लोबिन वयस्कावस्था में ऑक्सीजन का वहन नहीं कर पाता है।
6. अति मादाएँ एवं अति-अति मादाएँ (Super female and meta super female)
कुछ मादाओं में X गुणसूत्र अधिक आ जाते हैं, जिससे यह स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसी मादाओं में लिंग गुणसूत्र क्रमशः XXX, XXXX या XXXXX की संख्या में होते है अर्थात् इनमें गुणसूत्रों की संख्या क्रमशः 47, 48 एवं 49 हो जाती है। इस प्रकार की मादाएँ प्रजायी (fertile) तो होती है, किन्तु मन्द बुद्धि होती हैं।