'राजमुकुट' नाटक कथावस्तु कक्षा 10, 11,12 सम्पूर्ण हल

 'राजमुकुट' नाटक


 'राजमुकुट' नाटक का सारांश

 नाटक 'राजमुकुट' प्रसिद्ध साहित्यकार व्यथित हृदय द्वारा रचित है, इसके अन्तर्गत महाराणा प्रताप के स्वर्णिम जीवन पर आधारित कथावस्तु है। यह एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें महाराणा प्रताप, शक्तिसिंह, जगमल, अकबर आदि चरित्रों के माध्यम से देशप्रेम, धार्मिक सहिष्णुता एवं धार्मिक एकता की भावना आदि को आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक मानकर स्थापित करने का प्रयास किया गया है। राजमुकुट नाटक की कथावस्तु का मूल उद्देश्य देशप्रेम एवं स्वाधीनता की रक्षा के लिए बलिदान करने की भावना को प्रेरित करना है। ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर नाटककार ने काल्पनिक तत्त्वों का समावेश करके आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याओं की ओर संकेत किया है। नाटककार ने नाटक में प्राचीन मूल्यों एवं प्राचीन संस्कृति का भी वर्णन किया है।


 'राजमुकुट' नाटक की कथावस्तु (सारांश)

मेवाड़ में राणा जगमल  अपने वंश की मर्यादा का निर्वाह न करके सुरा सुन्दरी में डूबा हुआ था। प्रजा का शोषण किया जा रहा था। राणा जगमल अपने भोग-विलास एवं आनन्द में किसी भी प्रकार की बाधा सहन नहीं करता था; अतः वह एक क्रूर शासक बन गया था। अपने चाटुकारो के कहने पर उसने निरपराध विधवा प्रजावती की नृशंस हत्या करवा दी। प्रजा के हित में लगी रहनेवाली प्रजावती की हत्या से प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रजावती के शव को लेकर प्रजा राष्ट्रनायक चन्दावत के घर पहुंची। प्रजावती की हत्या के समाचार से चन्दावत भी क्षुब्ध हो उठे। इसी समय कुँवर शक्तिसिंह ने राणा जगमल के क्रूर सैनिकों के हाथो से एक भिखारिणी की रक्षा की। शक्तिसिंह भी जगमल के वास्तविक रूप को जानता था। जगमल के कार्यों से खिन्न शक्तिसिंह को चन्दावत ने कर्म-पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी। एक दिन जगमल राजसभा में बैठा हुआ आनन्द मना रहा था। उसी समय राष्ट्रनायक चन्दावत वहाँ आए। उन्होंने जगमल को उसके घृणित कार्यों के प्रति सचेत किया और प्रजा से क्षमायाचना के लिए कहा। उन्होंने जगमल से मेवाड़ के मुकुट को उचित पात्र को सौंप देने का आग्रह किया। जगमल ने उनकी बात स्वीकार की तथा अपनी तलवार और राजमुकुट उन्हें सौप दिया। उसने चन्दावत से योग्य उत्तराधिकारी को चुनने के लिए कहा। चन्दावत ने प्रताप को जगमल का उत्तराधिकारी बनाया और उसे राजमुकुट तथा राणा की तलवार सौंप दी। प्रताप मेवाड़ के राणा बन गए। सुरा सुन्दरी के स्थान पर शौर्य एवं त्याग-भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा प्रसन्नतापूर्वक राणा प्रताप की जय-जयकार करने लगी। ।।


द्वितीय अंक

मेवाड़ के राणा बनकर प्रताप ने अपनी प्रजा को खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रजा में वीरत्व का संचार करने के उद्देश्य से उन्होंने 'अहेरिया' उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय को एक वन्य पशु का आखेट करना अनिवार्य था। इसी आखेट में एक जंगली सूअर के आखेट को लेकर राणा प्रताप और शक्तिसिंह में विवाद  इतना बढ़ गया कि दोनों भाई अस्त्र शस्त्र लेकर एक दूसरे पर झपट पड़े। भावी अनिष्ट की आशंका से राजपुरोहित ने बीच बचाव-करने का प्रयत्न किया, परन्तु दोनों ही नहीं माने। राजकुल के अमंगल से बचाने के लिए राजपुरोहित ने अपने ही हाथों अपनी कटार अपनी छाती में घोषली और वही प्राण त्याग दिए। प्रताप ने शक्ति सिंह को देश से निकाल दिया । शक्तिसिह अकबर की सेना में जा मिले।


 तृतीय अंक

राजा मानसिंह राणा प्रताप के चरित्र से बहुत प्रभावित थे। वे राणा प्रताप से मिलने आए। राजा मानसिंह की बुआ सम्राट अकबर की ब्याही थी अतः राणा ने उसे धर्म से च्युत एवं विधर्मियों का सहायक समझकर उससे भेंट नहीं की। उन्होंने मानसिंह के स्वागतार्थ अपने पुत्र अमरसिंह को नियुक्त किया। इस व्यवस्था से मानसिंह ने स्वयं को अपमानित अनुभव किया और वे उत्तेजित हो उठे। वे अपने अपमान का बदला चुकाने की बात कहकर वहाँ से चले गए। दिल्ली सम्राट् अकबर मेवाड़-विजय के सपने देख रहा था। वह ऐसे ही किसी उचित अवसर की प्रतीक्षा में था। उसने सलीम, मानसिंह व शक्तिसिंह के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेज दी। हल्दीघाटी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। मानसिंह से बदला लेने के उद्देश्य से राणा प्रताप मुगल सेना के बीच पहुँच गए और मुगलो के व्यूह में फँस गए। राणा प्रताप को मुगलों से घिरा देखकर चन्दावत ने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतारकर अपने सिर पर पहन लिया और युद्धभूमि में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। प्रत्ताप बच गए। उन्होने युद्धभूमि छोड़ दी। दो मुगल सैनिकों ने प्रताप का पीछा किया। शक्तिसिंह ने उन मुगल सैनिकों का पीछा किया और उन दोनों को मार गिराया। शक्तिसिंह और प्रताप एक-दूसरे के गले मिले और प्रसन्नता के आँसुओं से उनका समस्त वैमनस्य घुल गया। उसी समय राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने प्राण त्याग दिए। चेतक की मृत्यु से राणा प्रताप को अपार दुःख हुआ।


 चतुर्थ अंक 

हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाने पर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। अकबर ने प्रताप की देशभक्ति आत्म-त्याग एवं शौर्य से प्रभावित होकर उनसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की। शक्तिसिंह साधु वेश में देश में विचरण कर रहा था और प्रजा में देशप्रेम की भावना तथा एकता जाग्रत करने का प्रयास कर रहा था। शक्तिसिंह अकबर के मानवीय गुणो से परिचित था। उसने प्रताप से अकबर की भेट को बुरा या छल-प्रपंच नहीं माना। उसका विचार था कि इन दोनों के मेल से देश में शान्ति व एकता की स्थापना होगी। 

नाटक के मार्मिक स्थल- इसी अंक में नाटक के मार्मिक स्थल समाहित हैं। एक दिन प्रताप के पास वन में एक संन्यासी आया। प्रताप संन्यासी का यथोचित सत्कार न कर पाने के कारण खिन्न हुए। वे अतिथि को भोजन देने की बात सोच ही रहे थे कि उनकी बेटी चम्पा अतिथि के लिए घास के बीजों की बनी हुई रोटी लेकर आई। उसी समय कोई वनविलाव चम्पा के हाथ से रोटी छीनकर भाग गया। चम्पा गिर गई और सिर में गहरी चोट लग जाने के कारण स्वर्ग सिधार गई। कुछ समय पश्चात् अकबर संन्यासी वेश में वहाँ आया और बोला "आप उस अकबर से तो सन्धि कर सकते हैं, जो भारतमाता को अपनी माँ समझता है, जो आपकी भाँति उसकी जय बोलता है।" मृत्यु-शय्या पर पड़े प्रताप को रह-रहकर अपने देश की याद आती है। वे अपने बन्धु-बान्धवो, पुत्रों और सम्बन्धियों को मातृभूमि की स्वतन्त्रता व रक्षा का व्रत दिलाते और भारतमाता की जय बोलते हुए स्वर्ग सिधार गए। ।


 'राजमुकुट' संबंधित प्रश्न उतर

1.राजमुकुट नाटक के प्रमुख पात्र

महाराणा प्रतापराणा ,अकबर,चन्दावत, कुँवर शक्तिसिंह, जगमल ,राष्ट्रनायक ,मानसिंह

Post a Comment

Previous Post Next Post